श्रीनगर। हैदरपोरा जामा मस्जिद के पदाधिकारियों को शुक्रिया, जिन्होंने बाढ़ में फंसे 2400 लोगों को आश्रय दिया है। यहां प्रार्थना व नमाज का दृश्य साथ-साथ दिख रहा है। कोई भेदभाव नहीं। सभी एक-दूसरे का दु:ख दर्द बांट रहे हैं। यही वजह है कि यह मस्जिद साम्प्रदायिक सद्भाव का केंद्र बन गया है।
इसके परिसर में हिन्दू-मुसलमान दोनों साथ-साथ बैठते हैं, खाना खाते हैं। सभी एक-दूसरे से अंजान हैं। सभी दूरदराज से जान बचाने के लिए यहां पहुंचे हैं।
जम्मू-कश्मीर में आई भीषण बाढ़ के बाद इस मस्जिद ने लोगों को आश्रय दिया है। महिलाएं, बच्चे, बूढ़े सभी यहां के टेंट हाउस में रह रहे हैं। कई शरणार्थी तो दूसरे राज्यों के भी हैं, जो जान बचाने के लिए यहां पहुंचे हैं। सभी मस्जिद के पदाधिकारियों की तारीफ करते हैं। जाति-धर्म के भेदभाव को सबने भूला दिया है।
58 वर्षीय बशीर अहमद अखून अपने परिवार के तीन सदस्यों के साथ यहां रह रहे हैं। वे सरकारी कर्मचारी हैं। बाढ़ की विभीषिका बताते-बताते उनकी आंखें नम हो जाती हैं। कहते हैं कि रविवार (31 अगस्त) की शाम तेज और निरंतर बारिश के बाद जब पानी का लेवल बढ़ना शुरू हुआ तो अफरातफरी मच गई। हर किसी को जान बचाने की फिक्र थी। सबसे पहले पहले मैंने एक नाव की व्यवस्था की। अपनी बच्ची को मस्जिद में छोड़ा, इसके बाद बाकी सदस्यों को बचाया।
साठ वर्षीय खालिदा अख्तर का दर्द भी कुछ कम नहीं है। बाढ़ के पानी ने तेंगपुरा में जब तांडव मचाना शुरू किया तो अपने परिवार के छह सदस्यों के साथ रविवार को घर छोड़ दिया। कहती हैं कि सबसे पहले एक हास्पिटल में आश्रय लिया। वह सुरक्षित नहीं था, तब पुलिस को सूचना दी। मध्य रात्रि में सेना के जवानों ने यहां पहुंचाया। वे जवानों और मस्जिद के पदाधिकारियों का शुक्रिया अदा करती हैं। क्योंकि, इन्हीं की वजह से उनके पति, तीन बेटे, बहुएं और बच्चे सुरक्षित हैं।
उनका बेटा मोहम्मद हरून कहते हैं कि उस रात तकरीबन दो हजार लोग आश्रय लेने अस्पताल पहुंचे थे। जबकि, अस्पताल भी असुरक्षित था, सेना के जवानों ने सभी को सुरक्षित जगहों पर पहुंचाया।
तेंगपुरा के 26 वर्षीय फर्नीचर कारीगर मोहम्मद आसिफ कहते हैं कि वे अपनी चाची से मिलने के लिए दक्षिणी कश्मीर के अनंतनाग गए थे। इसी बीच पानी बढ़ना शुरू हुआ। वे आनन-फानन में घर की ओर रवाना हुए। घर तक पहुंचने में तीन दिन का समय लगा। पता चला कि माता-पिता और दोनों बहनें लापता हैं। उन्हें ढूंढता रहा, निराश हो गया। तब कुछ लोगों ने जामा मस्जिद में जाकर देखने की सलाह दी। यहां पहुंचा तो देखा कि सभी सही-सलामत हैं। इस तीन मंजिली मस्जिद में तकरीबन चौबीस सौ लोगों ने आश्रय ले रखा है। सभी के लिए यहां खाना बनता है।
जामा मस्जिद समिति के अध्यक्ष हाजी गुलाम नबी डार कहते हैं कि यहां बारामूला, कुपवाड़ा और सोपोर के अलावा दूर-दराज इलाके के लोग भी हैं। बाढ़ की स्थिति को देखते हुए गत शुक्रवार को कैंप लगाने का निर्णय लिया गया था। वे कहते हैं कि इस कैंप को चलाने में सरकार की कोई भूमिका नहीं है। प्रशासन के प्रति भी लोगों में जबरदस्त आक्रोश है, क्योंकि पीड़ितों को अब तक कोई मदद नहीं मिली है।
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